भटका दिया जिंदगी ने
सोया नहीं हूं कई सालों से मैं अम्मा आंगन से तेरे जब से जुदा होकर गया हूं मोह पाश में बंधी है अखियां बंद हो कर अब खुलती कहां हैं सुबह से सांझ तेरे आंगन में होती थी अब तो सुबह से बस रात है यहां ठहरती थी तेरे आंगन में जिंदगी अब तो दौड़ती दौड़ती थक गई है खेलती थी जो जिंदगी तेरे आंगन में अब चौराहों में दौड़ने लगी है थक कर जो तेरी गोद में सोता था बचपन तेरी गोद की तकिया अब कहां है करवट बदल बदल के रात गुजरती है चैन न जाने कहां खो गया है यहां से वहां तक का मीलों का सफर अब तेरे हाथ की रोटियां मिलती कहां है चौराहो में दौड़ती जिंदगी से अब थकने लगा हूं बहारो में अब पतझड़ बनने लगा हूं सोया नही हूं कई सालों से अम्मा आंगन से जब से तेरे जुदा हुआ हूं ...।